क्या सच में कैलाश पर्वत पर रहते हैं भगवान शिव, जानिए इससे जुड़े और भी कई रहस्य

क्या सच में कैलाश पर्वत पर रहते हैं भगवान शिव, जानिए इससे जुड़े और भी कई रहस्य
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  • सावन का महीना भगवान शिव को बहुत प्रिय है। हिंदू धर्म में इस महीने को सबसे ज्यादा पवित्र माना जाता है। इस महीने में शिवभक्त भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सावन सोमवार का व्रत करते हैं। इसके साथ ही कांवड़ में  गंगाजल भरकर सैंकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हैं और इसी जल से भोले बाबा का अभिषेक करते हैं।

कैलाश पर्वत का भी हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। क्योंकि इस पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। कैलाश पर्वत से जुड़ी सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात ये है कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को अब तक हजारों लोगों ने फतह कर लिया है, लेकिन कैलाश पर्वत पर आज तक कोई नहीं चढ़ पाया है। जबकि कैलाश पर्वत की ऊंचाई माउंट एवरेस्ट से लगभग 2000 मीटर कम है। कैलाश पर्वत पर किसी का नहीं पहुंचना अब तक रहस्य ही बना हुआ है।

कैलाश पर्वत पर किसी के नहीं चढ़ पाने के पीछे कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं। कुछ लोगों का ये मानना है कि भगवान शिव कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। इसलिए कोई भी जीवित इंसान वहां तक नहीं पहुंच सकता है। मान्यताओं के अनुसार, जिसने कभी कोई पाप न किया हो मरने के बाद केवल वही कैलाश पर्वत को फतह कर सकता है।

ऐसा भी माना जाता है कि कैलाश पर्वत पर थोड़ा सा ऊपर चढ़ते ही व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है। चूंकि बिना दिशा के चढ़ाई करना मतलब मौत को दावत देना है, इसीलिए कोई भी इंसान आज तक कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाया।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण के मुताबिक इस पर्वत का स्लोप (कोण) 65 डिग्री से भी ज्यादा है। जबकि माउंट एवरेस्ट में यह 40-60 तक है, जो इसकी चढ़ाई को और मुश्किल बनाता है। ये भी एक वजह है कि पर्वतारोही एवरेस्ट पर तो चढ़ जाते हैं, लेकिन कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाते हैं।

कैलाश पर्वत पर चढ़ने की आखिरी कोशिश लगभग 18 साल पहले यानी साल 2001 में की गई थी। उस समय चीन ने स्पेन की एक टीम को कैलाश पर्वत पर चढ़ने की अनुमति दी थी। हालांकि, कैलाश पर्वत की चढ़ाई पर फिलहाल पूरी तरह से रोक लगी हुई है। क्योंकि भारत और तिब्बत समेत दुनियाभर के लोगों का मानना है कि यह पर्वत एक पवित्र स्थान है, इसलिए इस पर किसी को भी चढ़ाई नहीं करने देना चाहिए।

कैलाश पर्वत के ऐसे 6 अद्भुत रहस्य, जिन्हें विज्ञान भी आज तक नहीं सुलझा पाया

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चारधाम यात्रा के बीच में शिव-पार्वती की आकृति बनी है, जिससे श्रद्धालुओं में कैलाश पर्वत के बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ गई है शिव पुराण के अनुसार कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। कैलाश पर्वत या मानसरोवर झील से ऐसे अद्भुत रहस्य जुड़े हैं, जिसे आज तक वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाए हैं। आइए, जानते हैं कैलाश पर्वत के 6 रहस्य।

चारधाम यात्रा के बीच सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इस वायरल वीडियो में कैलाश पर्वत पर शिव-पार्वती जैसी दो आकृतियां बनती हुई नजर आ रही है। कैलाश पर्वत पर बादलों से घिरी इन आकृतियों को देखकर भक्त शिव-पार्वती मानकर इन्हें नमन कर रहे हैं। हालांकि, इस वीडियो में दिख रहीं आकृतियों के बारे में दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन बात करें, कैलाश पर्वत की, तो हिन्दू धर्म में कैलाश पर्वत का बहुत महत्व है। कैलाश पर्वत को भगवान शिव का स्थान माना जाता है। शिव पुराण, स्कंद पुराण और मत्स्य पुराण में कैलाश खंड नाम के अलग अध्याय मिलते हैं, जिनमें भगवान शिव के इस अद्भुत निवास स्थान के बारे में उल्लेख मिलता है।

धरती के एक छोर पर उत्तरी ध्रुव है और दूसरे छोर पर दक्षिणी ध्रुव। इन दोनों के बीचों-बीच हिमालय स्थित है। हिमालय के केंद्र में कैलाश पर्वत है। वैज्ञानिक मानते हैं कि यह धरती का केंद्र बिंदु है। कैलाश पर्वत केवल हिन्दू ही नहीं बल्कि जैन, बौद्ध और सिख धर्म के लोगों के लिए भी विशेष महत्व रखता है। कैलाश पर्वत की बात करें, तो कैलाश पर्वत एक विशाल पिरामिडनुमा पर्वत है। आम बोलचाल की भाषा में कहा जाए, तो कैलाश पर्वत एकांत में बसा हुआ पर्वत है, जिसके आसपास कोई बड़ा अन्य पर्वत नहीं है। वैज्ञानिक भी अपनी रिसर्च में इस बात का पता नहीं लगा पाए हैं कि ऐसा क्यों है।

दो रहस्यमयी सरोवर जो स्वास्तिक के समान लगते हैं​

कैलाश पर्वत पर दो रहस्यमयी सरोवर है, जो देखने में स्वास्तिक के समान लगते हैं। पहले सरोवर का नाम मानसरोवर है, जो दुनिया की शुद्ध पानी की उच्चतम झील है। इस सरोवर का आकार सूर्य के समान है। जबकि दूसरा सरोवर चंद्र के समान है, जो खारे पानी की उच्चतम झील है। खारे पानी की इस झील का नाम राक्षस झील बताया जाता है। इन दोनों का सम्बध सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा से जोड़ा जाता है। इन झीलों के रहस्य को वैज्ञानिक आज भी नहीं सुलझा पाए हैं। वैज्ञानिक आज तक इस बात का पता नहीं लगा सके हैं कि ये झीलें प्राकृतिक हैं या फिर मानव निर्मित। सबसे खास बात यह है कि दक्षिण दिशा से देखने पर इन दोनों झीलों के मिलने से स्वास्तिक की आकृति बनती हुई नजर आती है।

​कैलाश पर्वत के चारों तरफ है अलौकिक ऊर्जा​

माना जाता है कि कैलाश पर्वत के चारों तरफ एक अलौकिक ऊर्जा है, जिससे कोई भी यहां पहुंच नहीं सकता है। वैज्ञानिकों ने कई बार यहां पहुंचकर कैलाश पर्वत के रहस्यों को जानने की कोशिश की है लेकिन यहां कोई भी आसानी से नहीं पहुंच पाया है। वहीं, तिब्बत के कई सिद्धि प्राप्त संतों का कहना है कि कैलाश पर्वत पर केवल पुण्य आत्माएं ही निवास कर सकती हैं। कैलाश पर्वत के चारों तरफ अलौकिक शक्तियों का प्रवाह है, जिससे केवल सिद्धि प्राप्त करके टैलीपैथी के माध्यम से ही वहां आसपास रह रहे आध्यात्मिक गुरुओं से सम्पर्क किया जा सकता है।

डमरू और ओम की गूंजती आवाज​ 

कैलाश पर्वत या मानसरोवर झील के पास निरंतर डमरू बजने की आवाज आती है। साथ ही यहां ओम की आवाज भी गूंजती हुई सुनाई देती है। वैज्ञानिक आज तक इन आवाजों के बारे में पुख्ता तौर पर कुछ नहीं बता पाए हैं। जब आप दूर से इन आवाजों को सुनेंगे, तो आपको लगेगा कि शायद यह कोई हवाई जहाज उड़ने की आवाज है लेकिन अगर आप आंखे बंद करके ध्यानमुद्रा में इन आवाजों को सुनेंगे, तो आपको स्पष्ट तौर पर डमरू और ओम की आवाजें सुनाई देंगी। वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं कि शायद ये आवाजें बर्फ पिघलने की हो सकती है।

​कैलाश पर्वत पर दिखाई देती हैं 7 तरह की रोशनी​

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कई लोग कैलाश पर्वत पर दिखने वाली 7 तरह की रोशनियों के बारे में भी बताते हैं। उनका कहना है कि रात के समय कैलाश पर्वत पर रंग-बिरंगी सात तरह की रोशनी नजर आती है। इन रोशनियों का प्रकाश इतनी तेज होता है, जिसमें एक-एक चीज बहुत स्पष्ट नजर आती है। वैज्ञानिक इस रहस्य का भी पुख्ता तौर पर पता नहीं लगा पाए हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ऐसा चुम्बकीय बल के कारण हो सकता है।

कैलाश पर्वत के आसपास घूमते हैं हिम मानव​

आपने हिम मानव की कहानियां जरूर सुनी होगी लेकिन आज तक कोई यह नहीं जानता कि क्या सच में हिम मानव या येति होते हैं? हिमालय के क्षेत्र में रहने वाले कई लोगों का दावा है कि उन्होंने विशालकाय हिम मानव को कैलाश पर्वत के आसपास के क्षेत्रों में घूमते हुए देखा है। हालांकि, कुछ वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि हिम मानव होते हैं लेकिन वैज्ञानिकों ने हिम मानव की बनावट, इतिहास आदि जानकारियों के विषय में पुख्ता तौर पर कुछ नहीं बताया है। इसका अर्थ यह है कि लोगों के लिए हिम मानव अभी भी रहस्य ही है।

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माना जाता है कि कैलाश पर्वत भगवान शिव का स्वर्गीय निवास स्थान है। किंवदंतियों के अनुसार अमर शिव कैलाश पर्वत के शीर्ष पर रहते हैं और योगिक तपस्या करते हैं। इसका निर्माण तीस मिलियन साल पहले हुआ था और यह हिंदुओं, बौद्धों और जैनियों के लिए बहुत महत्व रखता है। मानसरोवर झील कैलाश का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसे हिंदू धर्म के अनुयायियों द्वारा सबसे पवित्र जल निकाय माना जाता है। भक्तों का मानना ​​​​है कि मानसरोवर में उपचार गुण हैं और यह आध्यात्मिक चिंतन के लिए आदर्श स्थान है। इसलिए, यदि आप कैलाश पर्वत पर जा रहे हैं तो आपको इस झील में पवित्र स्नान अवश्य करना चाहिए। कैलाश मानसरोवर यात्रा आध्यात्मिक विकास और आत्म-खोज की यात्रा है। इस यात्रा का एक मुख्य आकर्षण कैलाश पर्वत की परिक्रमा है। तीर्थयात्री कैलाश पर्वत के चारों ओर परिक्रमा करते हैं, जिसे कोरा या कैलाश परिक्रमा के रूप में भी जाना जाता है, जो दारचेन से शुरू होती है और मानसरोवर झील में पवित्र डुबकी लगाती है।

History of Kailash Mansarovar

कैलाश मानसरोवर यात्रा का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों और शास्त्रों में मिलता है और इसकी जड़ें भी प्राचीन हैं। यह आध्यात्मिक यात्रा सदियों से तीर्थयात्रियों द्वारा दिव्य आशीर्वाद और आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश में की जाती रही है।

पुराणों में कैलाश मानसरोवर यात्रा का पहला उल्लेख मिलता है। ये ग्रंथ कैलाश पर्वत की प्रमुखता और तीर्थयात्रा के अनुष्ठानों के बारे में बताते हैं। तिब्बती बौद्ध धर्म में कैलाश मानसरोवर यात्रा का बहुत महत्व है। मान्यताओं के अनुसार, प्रसिद्ध तिब्बती बौद्ध गुरु गुरु रिनपोछे ने कैलाश पर्वत के चारों ओर की गुफाओं में ध्यान लगाया था और अपने आध्यात्मिक पदचिह्नों को पीछे छोड़ गए हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं में कैलाश पर्वत को पौराणिक मेरु पर्वत माना जाता है, जो मूल रूप से एक ब्रह्मांडीय धुरी है जो पृथ्वी और स्वर्ग के क्षेत्रों को जोड़ती है। इसे सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सतलुज और करनाली सहित चार पवित्र नदियों का उद्गम स्थल भी माना जाता है।

कैलाश मानसरोवर पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार कैलाश मानसरोवर यात्रा भगवान से सीधा संबंध बनाने का एक तरीका है। मानसरोवर के पवित्र जल में डुबकी लगाने और कैलाश पर्वत की परिक्रमा पूरी करने से आपको स्वर्ग में स्थान प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। महाभारत के अनुसार, मोक्ष की खोज में पांडव भाइयों ने कैलाश की चुनौतीपूर्ण यात्रा की क्योंकि वे इसे स्वर्ग लोक का प्रवेश द्वार मानते थे। आइए कैलाश मानसरोवर यात्रा से जुड़ी कुछ अन्य पौराणिक कहानियों पर एक नज़र डालते हैं।

कैलाश पर्वत का पश्चिमी मुख अत्यंत पवित्र है और इसे शम्भाला का प्रवेश द्वार माना जाता है, जो शाश्वत आनंद और ज्ञान का एक पौराणिक साम्राज्य है। तीर्थयात्री कैलाश पर्वत के पश्चिमी मुख को श्रद्धांजलि देते हैं, जो इसके रहस्य को और भी बढ़ा देता है। माना जाता है कि मानसरोवर झील भगवान ब्रह्मा द्वारा बनाई गई थी, जिन्हें ब्रह्मांड का निर्माता माना जाता है। उनका मानना ​​था कि मानसरोवर झील विभिन्न महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठानों को करने के लिए सबसे उपयुक्त स्थल है। भगवान ब्रम्हा और उनके 12 पुत्रों, जिन्हें पवित्र पुरुष माना जाता था, ने विभिन्न तपस्या करके इस क्षेत्र को शुद्ध किया। बौद्ध धर्म में, मानसरोवर झील का सीधा संबंध अनोत्ता झील से माना जाता है। हिंदू धर्म में शिव के आराध्य यानी कैलाश पर्वत के दर्शन को मोहभंग और अज्ञानता के चंगुल से मुक्ति पाने में सहायक माना जाता है। जैनियों द्वारा कैलाश पर्वत को अष्टपद कहा जाता है। उनका मानना ​​है कि चौबीस तीर्थंकरों में से पहले, ‘ऋषभ देव’ ने इस पवित्र पर्वत पर मोक्ष प्राप्त किया था।

बोन धर्म में, कैलाश पर्वत को सिपाइमेन (आकाश देवी) कहा जाता है। बोन मिथकों में टीस को बारहवीं शताब्दी में बोन-शामन नारो-बोन-चुग और बौद्ध गाथा मिलारेपा के बीच जादू-टोने की लड़ाई का स्थल भी माना जाता है। हालाँकि गौतम बुद्ध ने पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में कैलाश पर्वत का दौरा किया था, लेकिन ऐसा माना जाता है कि बौद्ध धर्म सातवीं शताब्दी ईस्वी में भारत और नेपाल के रास्ते तिब्बत में आया था। तिब्बती बौद्ध लोग कैलाश पर्वत को कांग रिनपोछे कहते हैं और वे इसे डेमचोग और उनके साथी डोरसेफागमो का निवास स्थान मानते हैं। कांग रिम्पोछे के पास, तीन पहाड़ियाँ उभरी हुई दिखाई देती हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि वे बोधिसत्व वज्रपाणि, मंजुश्री और अवलोकितेश्वर के घर हैं। स्कंद पुराण के अनुसार, कैलाश पर्वत एक सर्वोच्च पर्वत है क्योंकि यहाँ भगवान शिव निवास करते हैं। इसलिए, इसे शिव का कैलाश पर्वत भी कहा जाता है। यह पवित्र पर्वत अपनी अनोखी विशालता और आकार के लिए जाना जाता है और इसे ‘पृथ्वी का आध्यात्मिक केंद्र’ भी माना जाता है। कैलाश पर्वत की औसत ऊंचाई 21778 फीट है। ‘कैलाश परिक्रमा’ या ‘कैलाश कोरा’ तीर्थयात्रियों द्वारा मानसरोवर झील पर किया जाने वाला एक प्रसिद्ध अनुष्ठान है। परिक्रमा पूरी करने में लगभग दो से तीन दिन लगते हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि आप पर्वत के चारों ओर परिक्रमा करते हैं तो यह आपके जीवन में नवीनीकरण, समृद्धि और सौभाग्य लाता है। हालाँकि, किसी को भी पहाड़ पर चढ़ने की अनुमति नहीं है क्योंकि इसे सभी धर्मों के लोग पवित्र मानते हैं।

पुराणों में वर्णित वर्णन के अनुसार, कैलाश पर्वत को ‘विश्व का स्तंभ’ माना जाता है। यह कमल का प्रतीक है और छह पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य में स्थित है। इस पर्वत की खास बात यह है कि इससे चार नदियाँ निकलती हैं- करनाली, सिंधु, सतलुज और ब्रह्मपुत्र और ये नदियाँ पूरी दुनिया को चार अलग-अलग हिस्सों में विभाजित करती हैं। महाराष्ट्र के रॉक-कट मंदिर एलोरा का नाम भी कैलाश पर्वत के नाम पर रखा गया है। इस मंदिर की कई मूर्तियों में शिव और पार्वती की कहानियाँ हैं, जिनमें राक्षस राजा रावण द्वारा कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयास भी शामिल है। शिव पुराण के अनुसार, कैलाश पर रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्तोत्रम गाया था।

मानसरोवर झील की किंवदंती

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हिंदू ग्रंथों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने सबसे पहले अपने मन में मानसरोवर झील की कल्पना की थी। फिर यह धरती पर साकार हुई। मानसरोवर शब्द ‘मनसा (मन) और सरोवरम’ (झील) से लिया गया है। झील के चारों ओर, आप बहुत सारे हंसों को देख सकते हैं। झील को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। देवी के ग्रंथों के अनुसार, देवी सती का हाथ मानसरोवर झील पर गिरा था। गर्मियों के दौरान, जब बर्फ पिघलती है, तो आप एक अनोखी आवाज़ सुन सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह भगवान शिव द्वारा लाई गई डमरू की आवाज़ है। यह भी माना जाता है कि उनके समय में नीला जलकुंभी या नीलकमल खिलता है और कैलाश पर्वत की दिशा में होता है।

मानसरोवर झील या कैलाश मानसरोवर झील को बहुत पवित्र और पवित्र माना जाता है। मानसा सरोवर यात्रा के दौरान, जो लोग मानसरोवर झील के पवित्र जल को पीते हैं, उन्हें भगवान शिव के आशीर्वाद से उनके सभी पापों से मुक्ति मिलती है।

कैलाश पर्वत से जुड़ा रहस्य

कैलाश पर्वत के इर्द-गिर्द कई आकर्षक रहस्य हैं। इसे ‘ब्रह्मांड का केंद्र’ और पृथ्वी और स्वर्ग के बीच की कड़ी माना जाता है। नासा ने भगवान शिव के मुस्कुराते चेहरे को दर्शाते हुए कैलाश पर्वत की सैटेलाइट तस्वीरें खींची हैं। कैलाश पर्वत के इर्द-गिर्द कई अनकहे रहस्य और तथ्य हैं। इस पवित्र पर्वत पर पहुँचने के सिर्फ़ 12 घंटे बाद ही बालों और नाखूनों की असामान्य वृद्धि देखी गई है। अपनी पवित्र स्थिति के कारण किसी को भी कैलाश पर्वत पर चढ़ने की अनुमति नहीं है

माउंट कैलाश की परिक्रमा – आत्मा से शिव तक की यात्रा

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कैलाश मानसरोवर हिमालय में स्थित एक पवित्र क्षेत्र है जिसमें कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील शामिल है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता को देखने के लिए बहुत से पर्यटक आते हैं, जिसे सबसे पुराने तीर्थ मार्ग के रूप में जाना जाता है, जिसे सांस्कृतिक महत्व के कारण लोकप्रिय माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह धरती और स्वर्ग के बीच की कड़ी है। लोगों को अपने जीवन में एक बार इन पवित्र स्थलों की यात्रा अवश्य करनी चाहिए।

माउंट कैलाश की परिक्रमा – आत्मा से शिव तक की यात्रा

माउंट कैलाश की परिक्रमा, जिसे “कैलाश कोरा” भी कहा जाता है, केवल एक शारीरिक यात्रा नहीं बल्कि एक गहन आध्यात्मिक अनुभव है। यह परिक्रमा तिब्बत के पवित्र कैलाश पर्वत के चारों ओर की जाती है और दुनिया की सबसे कठिन लेकिन सबसे पवित्र यात्राओं में से एक मानी जाती है। हिंदू, बौद्ध, जैन और बोन धर्मों में इस स्थान को अत्यंत पवित्र माना जाता है।

कैलाश पर्वत की ऊंचाई लगभग 6,638 मीटर है, लेकिन परिक्रमा की कुल दूरी लगभग 52 किलोमीटर होती है, जिसे तीन दिनों में पूरा किया जाता है। यह यात्रा हर भक्त के लिए एक परीक्षा भी होती है और मोक्ष की ओर एक आध्यात्मिक कदम भी।


📍 पहला दिन: यमद्वार से दिरापुक (Dirapuk)

परिक्रमा की शुरुआत यमद्वार से होती है, जिसे “मृत्यु का द्वार” कहा जाता है। यह स्थान दार्चेन से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित है। यहीं से तीर्थयात्री अपने पुराने कर्मों को त्यागकर नए जीवन की ओर बढ़ते हैं।
इस दिन की यात्रा लगभग 12-13 किलोमीटर होती है और Dirapuk Gompa तक जाती है। इस मार्ग से कैलाश पर्वत का उत्तरी चेहरा दिखाई देता है, जो बेहद दिव्य और प्रभावशाली होता है।


🗻 दूसरा दिन: दिरापुक से डोल्मा ला पास होते हुए जुतलपुक (Zutulpuk)

यह परिक्रमा का सबसे कठिन लेकिन आध्यात्मिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन यात्री डोल्मा ला पास (5630 मीटर) को पार करते हैं। यह बर्फ से ढका और तीव्र चढ़ाई वाला मार्ग है।
डोल्मा ला के समीप गौरी कुंड स्थित है, जिसे माता पार्वती की उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है। यह स्थान इतना पवित्र है कि कई श्रद्धालु यहां से जल लेकर जाते हैं।
इसके बाद तीव्र ढलान और कठिन रास्तों से होकर यात्री Zutulpuk पहुंचते हैं। यह दिन लगभग 20-22 किलोमीटर की पैदल यात्रा होती है।


🧘 तीसरा दिन: जुतलपुक से दार्चेन वापसी

इस दिन की यात्रा अपेक्षाकृत आसान होती है। लगभग 17-18 किलोमीटर की यह यात्रा घाटी और नदी के किनारे से होती हुई वापस दार्चेन तक पहुंचती है। इस दौरान यात्री पीछे मुड़कर कैलाश के अद्भुत दृश्यों को निहारते हैं और अपने भीतर की यात्रा को भी महसूस करते हैं।


🌼 धार्मिक मान्यता और आस्था

कहा जाता है कि एक बार कैलाश की परिक्रमा करने से व्यक्ति के जन्मों के पाप समाप्त हो जाते हैं, और 108 बार परिक्रमा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
बौद्ध धर्म में इसे मेरु पर्वत, जैन धर्म में अष्टापद, और बोन धर्म में इसे भगवान शेनराब का निवास स्थान माना जाता है।

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Location

कैलाश मानसरोवर, तिब्बत के पश्चिमी भाग और चीन के स्वायत्त क्षेत्र में स्थित पवित्र पर्वत है, जिसे कैलाश पर्वत के नाम से जाना जाता है और पवित्र मानसरोवर झील है, जहाँ से मार्ग उत्तराखंड से शुरू होते हैं। कैलाश पर्वत की ऊँचाई समुद्र तल से लगभग 6,638 मीटर है और मानसरोवर झील लगभग 4,588 मीटर है।

यह उत्तराखंड और लद्दाख के पास है; कुल मिलाकर, कैलाश मानसरोवर का क्षेत्र चीन, भारत और नेपाल की सीमाओं के पास भी है।
Route: Nepal Route (Delhi → Kathmandu → Kailash)
Stops: Delhi → Kathmandu → Syabrubesi → Kerung → Saga → Mansarovar → Darchen → Yamdwar → Dirapuk → Dolma La Pass → Zutulpuk → Darchen → Return

History

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कैलाश मानसरोवर अपने रोचक इतिहास के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें कैलाश पर्वत भी शामिल है, जो 30 मिलियन वर्ष पुराना है और इसका निर्माण हिमालय पर्वत निर्माण के दौरान हुआ था। कई पर्यटक कैलाश मानसरोवर यात्रा को हिमालय की सबसे कठिन यात्रा मानते हैं। कैलाश पर्वत की कई कहानियाँ हैं जो 4 प्रकार के धर्मों से संबंधित हैं और ये हैं हिंदू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और बोन धर्म।

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, कैलाश मानसरोवर भगवान शिव का घर है और इसलिए यह तीर्थयात्रियों के लिए पवित्र गंतव्य है। पुराणों में उल्लेख किया गया है कि कैलाश पर्वत को दुनिया का स्तंभ कहा जाता है क्योंकि इसकी ऊँचाई 84,000 लीग है जो कमल को इंगित करने वाली 6 पर्वत श्रृंखलाओं के केंद्र में स्थित है।

हिंदू दृष्टिकोण में, मानसरोवर झील जिसे मानसरोवर झील के नाम से भी जाना जाता है, भगवान ब्रह्मा ने अपने मन में बनाई थी और दो संस्कृत शब्दों ‘मनसा सरोवरम’ के साथ पृथ्वी पर प्रकट हुई थी जिसका अर्थ है ‘मन’ और ‘झील’। मानसरोवर झील के बारे में एक और पौराणिक कथा झील की उत्पत्ति का वर्णन करती है। शास्त्रों के अनुसार, सती का हाथ एक विशाल पर्वत के नीचे गिरा, जिससे पवित्र मानसरोवर झील का निर्माण हुआ।

Best Time to Explore Kailash Mansarovar

कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय गर्मियों का है, जो मई से सितंबर तक शुरू होता है क्योंकि इस अवधि में सबसे सुखद मौसम होता है। पर्यटक बिना किसी मौसम संबंधी परेशानी के आसानी से यात्रा कर सकते हैं।

गर्मियों के मौसम में मौसम सुहाना और आनंददायक हो जाता है। दिन का तापमान लगभग 15 डिग्री सेल्सियस से 25 डिग्री सेल्सियस तक होता है जो ट्रैकिंग के लिए भी सही समय है।

गर्मियों में महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहार मनाए जाते हैं जैसे कि गुरु पूर्णिमा और कैलाश मानसरोवर में मनाया जाने वाला सागा दावा। ये अवसर तीर्थयात्रा के लिए उत्सव और आध्यात्मिक माहौल देते हैं। इसलिए, विशेष रूप से गर्मियों में अनोखे अनुभवों के लिए यात्रा करने की सलाह दी जाती है।

ADI KAILASH

आदि कैलाश उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित एक पवित्र स्थल है। पुराणों के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि जब पार्वती और शिव कैलाश मानसरोवर से त्रियुगीनारायण जा रहे थे, तो वे कुछ समय के लिए आदि कैलाश में रुके थे। पंच कैलाश में से, आदि कैलाश को दूसरा सबसे महत्वपूर्ण शिखर माना जाता है। कैलाश पर्वत से इसकी समानता इसके आकर्षण को और बढ़ा देती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, आदि कैलाश को वह स्थान माना जाता है जहाँ भगवान शिव अपने भक्तों की प्रार्थनाओं और आवश्यकताओं का जवाब देने के लिए निवास करते हैं। यह एक पवित्र स्थल है जहाँ आप भगवान शिव की दिव्य उपस्थिति के साथ संवाद कर सकते हैं और उनसे अनुग्रह माँग सकते हैं। यह पवित्र यात्रा आपको लुभावने परिदृश्यों के माध्यम से ट्रेक पर जाने की अनुमति देती है और तीर्थयात्रियों को भगवान शिव की दिव्य उपस्थिति का अनुभव करने का मौका देती है।

पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व

आदि कैलाश के बारे में हिंदू धर्मग्रंथों में कई पौराणिक कथाएँ और कहानियाँ हैं। पुराणों के अनुसार, आदि कैलाश को भगवान शिव और पार्वती के विवाह का मुख्य पड़ाव माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति कैलाश मानसरोवर से हुई थी। आदि कैलाश को भगवान शिव, पार्वती, गणपति और कार्तिकेय का घर भी माना जाता है।

दिव्य रूप और ब्रह्मांडीय नृत्य

आदि कैलाश को वह स्थान माना जाता है जहाँ शिव ने अपना ब्रह्मांडीय नृत्य किया था, जिसे तांडव के नाम से भी जाना जाता है। इस स्थान पर शिव ने ऋषि अष्टावक्र को अपना दिव्य रूप दिखाया था। आदि कैलाश का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व इसके आध्यात्मिक महत्व को बढ़ाता है, जो दुनिया के विभिन्न कोनों से भक्तों को आकर्षित करता है। यह पर्वत आध्यात्मिकता का प्रतीक है और हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए अपार भक्ति का स्थान माना जाता है, जो भगवान से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है।

माता पार्वती की भक्ति की परीक्षा

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आदि कैलाश को वह स्थान भी माना जाता है, जहाँ भगवान शिव ने माता पार्वती की भक्ति की परीक्षा ली थी। पार्वती भगवान शिव से प्रेम करने लगीं और किसी भी कीमत पर उनसे विवाह करना चाहती थीं। हालाँकि, शिव किसी से विवाह नहीं करना चाहते थे, क्योंकि उनका ध्यान अपनी आध्यात्मिक गतिविधियों पर था। इस वजह से शिव ने माता पार्वती से उनकी भक्ति और उनके प्रति सच्ची भावनाओं की परीक्षा लेने के लिए कई जटिल कार्य करने को कहा। उस दौरान पार्वती ने खुद को ध्यान, आत्म-संयम और प्रार्थना जैसे कुछ सबसे कठिन आध्यात्मिक अनुशासनों के अधीन कर लिया।

पार्वती ने सभी सौंपे गए कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा किया, और इससे भगवान शिव प्रभावित हुए। फिर उन्होंने माता पार्वती से विवाह करने का फैसला किया, और उसके बाद वे दोनों हमेशा खुशी-खुशी रहने लगे। भगवान शिव ऋषि पार्वती की भक्ति से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उनकी इच्छा स्वीकार कर ली और उनके साथ आदि कैलाश में रहने लगे। मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने आदि कैलाश को अपना घर बनाने का फैसला किया ताकि वे इस पर्वत पर आने वाले अपने उत्साही अनुयायियों की प्रार्थनाओं और इच्छाओं का जवाब दे सकें।

शिव का पार्थिव निवास

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आदि कैलाश को भगवान शिव का सांसारिक निवास माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि शिव ने इस पवित्र क्षेत्र में हज़ारों वर्षों तक तपस्या की थी। विभिन्न

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, आदि कैलाश में भगवान शिव की उपस्थिति उनके दिव्य रूप और देवी पार्वती के साथ उनके अटूट बंधन का प्रतीक है।

रावण से संबंध

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हिंदू पौराणिक कथाओं में, आदि कैलाश का रामायण महाकाव्य के रावण से घनिष्ठ संबंध माना जाता है। रावण, जो इस कहानी का मुख्य खलनायक था, एक राक्षस राजा था और जीवन भर शिव का एक उत्साही भक्त था। ऐसा माना जाता है कि आदि कैलाश पर राक्षस राजा रावण ने जबरदस्त शक्ति प्राप्त करने और सर्वोच्च बनने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। भगवान शिव के प्रति उनकी भक्ति और समर्पण के साथ-साथ उनके बलिदानों ने उन्हें शिव का अनुग्रह दिलाया। भगवान शिव रावण की प्रतिबद्धता और समर्पण से प्रभावित थे। उन्होंने उसे अनगिनत वरदान और अपार शक्ति प्रदान की जिससे वह बहुत शक्तिशाली बन गया। राक्षस राजा रावण द्वारा आदि कैलाश पर की गई तपस्या के कारण, उसे असाधारण कौशल और शक्ति प्राप्त हुई। हालाँकि, अंत में, वह अपने स्वयं के विनाश का कारण बन गया क्योंकि उसने अपनी क्षमताओं का दुरुपयोग किया और अहंकार से काम लिया। शिव के प्रति गहरी भक्ति होने के बावजूद, उसने अपने अलौकिक कौशल का उपयोग स्वार्थी और हानिकारक उद्देश्यों के लिए किया।

रावण की कहानी आदि कैलाश पर आने वाले पर्यटकों को सुनाई जाती है, ताकि उन्हें भगवान का आशीर्वाद मिलने पर सावधान रहने की सीख दी जा सके। यह शक्ति, ईमानदारी और विनम्रता के उचित उपयोग का मूल्य भी सिखाती है।

महाभारत का संदर्भ

आदि कैलाश पर्वत हिंदू पौराणिक कथाओं और महाभारत में बहुत प्रासंगिक है। माना जाता है कि पांडव भाई अर्जुन, नकुल, युधिष्ठिर, सहदेव और भीम अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ भगवान शिव का आशीर्वाद लेने के लिए इस पर्वत की पवित्र तीर्थ यात्रा पर गए थे।

अपनी लंबी यात्रा के दौरान, पांडवों ने कई पवित्र स्थानों पर पड़ाव डाले और आदि कैलाश उनमें से एक था। ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र पर्वत की उनकी यात्रा ने उनकी आध्यात्मिक यात्रा पर बहुत प्रभाव डाला। इसने कुरुक्षेत्र के युद्ध में उनकी सेना की अंतिम सफलता में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। ऐसा माना जाता है कि उनकी आदि कैलाश यात्रा ने द्रौपदी और पांडवों की आत्माओं को शुद्ध किया, जिससे शिव का आशीर्वाद मिला और उनका संकल्प मजबूत हुआ। ऐसा माना जाता है कि पवित्र यात्रा के कारण उन्हें जो स्वर्गीय अनुग्रह और आध्यात्मिक शक्ति मिली, उसने यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई कि वे युद्ध जीतें। यह तथ्य कि द्रौपदी ने पांडवों के साथ कैलाश पर्वत की यात्रा की थी, उन लोगों के लिए आध्यात्मिक महत्व और ऐतिहासिक संबंध की गहराई प्रदान करता है जो आदि कैलाश यात्रा में भाग लेना चाहते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस पर्वत की तीर्थयात्रा में ढेर सारे दिव्य लाभ लाने, आत्मा को शुद्ध करने और व्यक्ति के अपने आध्यात्मिक और व्यक्तिगत विकास को आगे बढ़ाने की शक्ति है।

कैलाश पर्वत से संबंध

आदि कैलाश को अक्सर तिब्बत में स्थित कैलाश पर्वत से जोड़ा जाता है। कैलाश पर्वत से समानता के कारण आदि कैलाश को छोटा कैलाश के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म, बॉन, बौद्ध धर्म और जैन धर्म में, तिब्बत में स्थित कैलाश पर्वत को दुनिया भर के सबसे पवित्र पर्वतों में से एक माना जाता है। कैलाश पर्वत की बहन आदि कैलाश अपनी भव्यता से पर्यटकों को चकित कर देती है। पर्वत चोटियों, आस-पास के परिदृश्य और चट्टानों की संरचनाओं के मामले में आदि कैलाश और कैलाश पर्वत के बीच एक अनोखी समानता है। इन अद्भुत समानताओं के कारण, आदि कैलाश को छोटा कैलाश भी कहा जाता है।

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